हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का आठवां महीना कार्तिक होता है। पुराणों में कार्तिक मास को स्नान, व्रत व तप की दृष्टि से मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। इस बार कार्तिक मास का स्नान 29 अक्तूबर से कार्तिक स्नान आरंभ हो रहा है। इस पूरे माह स्नान, दान, दीपदान, तुलसी विवाह, कार्तिक कथा का माहात्म्य आदि सुनते हैं। ऎसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है व पापों का शमन होता है। पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति इस माह में स्नान, दान तथा व्रत करते हैं, उनके पापों का अन्त हो जाता है।
कार्तिक माह अत्यधिक पवित्र माना जाता है। भारतके सभी तीर्थों के समान पुण्य फलों की प्राप्ति एक इस माह में मिलती है। इस माह में की पूजा तथा व्रत से ही तीर्थयात्रा के बराबर शुभ फलों की प्राप्ति हो जाती है। इस माह के महत्व के बारे में स्कन्द पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। कार्तिक माह में किए स्नान का फल, एक सहस्र बार किए गंगा स्नान के समान, सौ बार माघ स्नान के समान है।

क्या करे

कार्तिक मास में जो लोग संकल्प लेकर प्रतिदिन प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठकर किसी तीर्थ स्थान, किसी नदी अथवा पोखर पर जाकर स्नान करते हैं या घर में ही गंगाजल युक्त जल से स्नान करते हुए भगवान का ध्यान करते हैं, उन पर प्रभु प्रसन्न होते हैं। स्नान के पश्चात पहले भगवान विष्णु और बाद में सूर्य भगवान को अर्ध्य प्रदान करते हुए विधिपूर्वक अन्य दिव्यात्माओं को अर्ध्य देते हुए पितरों का तर्पण करना चाहिए।

पितृ तर्पण के समय हाथ में तिल अवश्य लेने चाहिएं क्योंकि मान्यता है कि जितने तिलों को हाथ में लेकर कोई अपने पितरों का स्मरण करते हुए तर्पण करता है उतने ही वर्षों तक उनके पितर स्वर्गलोक में वास करते हैं। इस मास अधिक से अधिक प्रभु नाम का चिंतन करना चाहिए।

स्नान के पश्चात नए एवं पवित्र वस्त्र धारण करें तथा भगवान विष्णु जी का धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प एवं मौसम के फलों के साथ विधिवत सच्चे मन से पूजन करें, भगवान को मस्तक झुकाकर बारम्बार प्रणाम करते हुए किसी भी गलती के लिए क्षमा याचना करें।

 

तुलसी कथा

भगवान विष्णु ने जब श्री कृच्चण रूप में अवतार लिया तब रूत्मिणी और सत्यभामा उनकी पटरानी हुईं। सत्यभामा पूर्व जन्म में एक ब्राह्मण की
पुंत्री थी । युवावस्था में ही एक दिन इनके पति और पिता को एक राक्षस ने मार दिया । कुछ दिनों तक ब्राह्मण की मुवी रोती रही । इसके बाद
उसने स्वयं को विष्णु भगवान की भक्ति में समर्पित कर दिया ।

वह सभी एकादशी का व्रत रखती और कार्तिक मास में नियम पूर्वक सूर्योदय से पूर्व शान करके भगवान विष्णु और तुलसी कीं पूजा करती थी ।
खुदाया जाने यर एक दिन जब ब्राह्मण की पुंत्री कार्तिक स्वान के लिए गंगा में डुबकी लगायी तब बुखार से कांपने लगी और गंगा तट पर उसकी
मृत्यु हो गयी । उसी समय विष्णु लोक से एक विमान आया और ब्राह्मण की मुवी का दिव्य शरीर विमान में बैठकर विष्णु लोक पहुंच गया ।

जब भगवान विष्णु ने दृष्य अवतार लिया तब ब्राह्मरग की मुवी ने सत्यभम्मा के रूप में जम लिया । कार्तिक मास में दीपदान करने के कारपा
सत्यभामा को सुख और संयति प्राप्त हुई। नियमित तुलसी में जल अर्पित करने के काररग सुन्दर वाटिका का सुख मिता । शास्तों के अनुसार
कार्तिक मास में लिये गये दान पुण्य का पन्त व्यक्ति को अगले जन्म में अवश्य प्राप्त होता है।

एक अन्य प्रसंग के अनुसार 

गुंपावती नामक स्ली ने कार्तिक भास में मंदिर के द्वार पर तुलसी की एक सुन्दर सी वाटिका लगाई उस पुण्य के
कारण वह अगले जम में सत्यभामा बनी और सदैव कार्तिक मास का व्रत करने के कारण वह भगवान श्रीकृष्णा की पत्नी बनी । यह है कार्तिक
मास में तुलसी आराधना का फला इस मास में तुलसी विवाह की भी परंपरा है जो कार्तिक मास की पूर्णिमा तिधि को क्रिया जता है। इसमें तुलसी
के पौधे को सजाया संवारा जस्ता है एवं भगवान शालम्राम का पूजन क्रिया जता है। तुलसी का विधिवत विवाह क्रिया जता है ।

जो व्यक्ति यह चाहता है कि उसके घर में सदैव शुभ कर्म हो, सदैव सुख शान्ति का निवास रहे उसे तुलसी की आराधना अवश्य करनी चाहिए।
कहते हैं कि जिस घर में शुभ कर्म होते हैं यहाँ तुलसी हरी भरी रहती हैं एवं जहां अशुभ कर्म होते हैं यहाँ तुलसी कभी भी हरी भरी नहीं रहती ।
तुलसी हमारी आस्था एवं श्रद्धा की प्रतीक है एवं अपरिमित औषधीय गुणों से युक्त भी । वर्ष भर तुलसी में जल अर्पित करना एवं सायंकाल तुलसी
के नीचे दीप जलाना अत्यंत श्रेष्ठ माना जात्ता है। कार्तिक मास में तुलसी के समीप दीपक जलाने से मनुष्य अनंत पुण्य का भागी बनता है । इस
मास में तुलसी के समीप दीपक जलाने से व्यक्ति को साक्षात लश्मी की कृश प्राप्त होती हैं क्योंकि तुलसी में साक्षग़त लश्मी का निवास माना गया है।

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