सूर्यं और चन्द्र जिस अस्काशीय वृत्ताकार (वतुंलाकार) मार्ग से गति कस्ते हैं, उस वतुंल के एक समान २७ विभाग की सकल्पना३ है जैसे साईकिल के पहिये में आरे लगे होत्ते हैं, ठीक उसी प्रकार की यह रचना है । यह प्र…येकदृ विभाग नक्षत्र का विभाग कहलाता है आकाश में तारों के अनेक समूह हैं । हन समूहों अथवा गुच्छी३ में आने वाले तारो’ की स्थिति के कारण प्र…येकदृ गुच्छे की एक विशेष आकृति बनी हुई है । ऊपर बताये हुए नक्षत्रों के २७ विभागों में प्न…येकदृ ऐसा एक एक तारों का समूह अथवा तारों का विशिष्ट आकारक्ला गुच्छा प्राकृतिक रूप से ही वैसी आकृति बनाये हुए है । इन २७-२८ तारकजूथों के तारे कभी भी नष्ट नहीं होते । कुछ आकाश में ही नष्ट  होका गिर जाने वाले तारों जैसे पदार्थों को उल्का वम्हते हैं । परन्तु नक्षत्र विभागों के तारे कभी गिरते नहीं हैं । गिर जाने की क्रिया के लिए सस्कृत्त’ में .-३क्षरण होना’ शब्द है । जो कभी भी. गिरने वाले नहीं,उनके लिए नक्षत्र शब्द है । .-श्नक्षत्र’ शब्द की सस्कृत’ ब्याख्या है, .-॰न क्षरति इति नक्षत्र’ । जो गिस्ने वाले नहीं हैं, और स्थिर प्रकृति के हैं, वे नक्षत्र हैँ । ऐसे ये २७ तारक समूह ही नक्षत्र वन्हलात्ते हैं । अन्य तारक सपूहों को नक्षत्र नहीँ वम्हते । सूर्य या चन्द्र जब जिस नक्षत्र विभाग में होते हैं या उनमें से हका गुजरते हैँ तब सूर्य या चन्द्र उस नक्षत्र में है, ऐसा वव्हा जाता है । उस नक्षत्र विभाग में से उनका गति काना क्ल रहा है । पचाग” में जिस दिन चन्द्रमा के नक्षत्र का नाम लिखा होता है, चन्द्रमा उस दिन उस नक्षत्र में विचरण काता है वतुंल के ३६० अंश होने से एक समान २७ नक्षत्र विभागों में सेप्र…येकदृ नक्षत्र विभाग १ ३ अंश और २० क्ला का होता है । १ अंश ६० क्ला और १ क्ला = ६० विक्ला का माप है ।