जन्म-कुंडली में ग्रहों की दृष्टि

सूर्य ग्रह की दृष्टि

सूर्य जिस भाव में बैठा होता हैं, उस भाव से पूर्ण दृष्टि से सप्तम भाव को देखता हैं | उदाहरण के लिए अगर सूर्य लग्न में बैठा हो तो सप्तम भाव पर पूर्ण दृष्टि होती हैं |

चन्द्रमा ग्रह की दृष्टि

चन्द्रमा जिस भाव में बैठा होता हैं, उस भाव से पूर्ण दृष्टि से सप्तम भाव को देखता है | जैसे-चंद्रमा अगर द्वितीय भाव में बैठा हो तो उसकी सप्तम दृष्टि अष्टम भाव पर पडती है |

मंगल ग्रह की दृष्टि

कुंडली में मंगल जिस भाव में बैठा होता है, उस भाव से चौथे, सातवे, आठवे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हैं | मंगाक की दृष्टि 4, 7 व 8 होती हैं | जैसे- अगर मंगल पंचम भाव में बैठा हो तो चौथी दृष्टि सप्तम भाव पर, सप्तम दृष्टि बारहवे पर व अष्टम दृष्टि लग्न भाव पर होती हैं

बुध ग्रह की दृष्टि

बुध कुंडली में जिस भाव में बैठा होता हैं, वहाँ से पूर्ण सप्तम दृष्टि से देखता हैं

गुरु ग्रह की दृष्टि

गुरु कुंडली में जिस भाव में भी बैठा होता है तो वहाँ से वह 5वें, 7वें व 9वें भाव को देखता हैं | अर्थात इसकी दृष्टि 5, 7, व 9 होती है | उदाहरण के लिये अगर गुरु लग्न में हो तो पंचम दृष्टि पंचम भाव पर सप्तम दृष्टि विवाह स्थान पर तथा नवम दृष्टि भाग्य स्थान पर होती हैं |

शुक्र ग्रह की दृष्टि

जन्मकुंडली में शुक्र जिस भाव में बैठा होता है वहां से पूर्ण सप्तम दृष्टि से देखता हैं |

शनि ग्रह की दृष्टि

शनि की दृष्टि 3, 7 व 10 होती हैं | जन्मपत्री में शनि जिस भाव में होता हैं वहां से तीसरे, सातवे व दशम भाव को देखता हैं | उदाहरण के लिए अगर शनि सप्तम भाव में बैठा हो तो उसकी तीसरी दृष्टि भाग्य स्थान पर, सप्तम लग्न पर तथा दशम दृष्टि चतुर्थ भाव पर आती है

राहु-केतु शनि ग्रहों की दृष्टि

राहु व केतु की 5, 7 व 9वी दृष्टि होती है | ये जिस भाव में भी बैठते हैं वहां से पंचम, सप्तम व नवम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं | जैसे- अगर राहु दशम भाव में हो तो इसकी पंचम दृष्टि धन भाव पर, सप्तम दृष्टि चतुर्थ भाव पर तथा नवं दृष्टि छटे भाव पर आती हैं |

श्रीसाम्बसदाशिव अक्षरमाला Shri Samba Sadashiva Aksharamala