BUDH ADITYA RAJYOGA बुधादित्य योग

कुंडली में सबसे लोकप्रिय है बुधादित्य योग

सूर्य आत्मा का कारक ग्रह है। ज्योतिष शास्त्र में तो सूर्य ही सबसे प्रधान ग्रह है। चराचर जगत में सूर्य का ही प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। सूर्य पाप ग्रह न होकर क्रूर ग्रह है। क्रूर एवं पापी में बड़ा अंतर होता है।

क्रूर तो शुभ-अशुभ सभी कार्यों में रूखापन दिखाते हुए लक्ष्य में पवित्रता बनाए रखता है लेकिन पापी भाव अच्‍छा नहीं माना जाता है।

बुध ग्रह सूर्य के सबसे निकट है और इसीलिए उसका पुरुषत्व समाप्त हो गया। लेकिन बुध भी अपना प्रभाव अन्य ग्रहों के सान्निध्य की अपेक्षा सूर्य के साथ होने पर विशेष प्रदान करता है।

जन्मांग चक्र में प्राय: 70 प्रतिशत संभावना सूर्य, बुध के एक साथ बने रहने की ही होती है।

बुधादित्य नाम से विख्यात यह योग अलग-अलग भावों में अतिविशिष्ट फल प्रदान करने वाला होता है।

मगर यह ज्यादा और शुभा-शुभ फल..

सूर्य + बुध मेष राशि पर हो या फिर बुध अपनी कन्या राशि या मिथुन राशि पर

या केन्द्र भाव, प्रथम , चतुर्थ , सप्तम , दसम
भाव मे हो तो मगर यह त्रिकोण भाव मे भी अच्छा माना जाता है

त्रिकोण भाव
पंचम और नवम भाव

इस योग का शुभ प्रभाव जातक को बुद्धि, विशलेषणात्मक क्षमता, वाक कुशलता, संचार कुशलता, नेतृत्व करने की क्षमता, मान, सम्मान, प्रतिष्ठा तथा ऐसी ही अन्य कई विशेषताएं प्रदान करता है।

शुभ बुध आदित्य योग के जातक मे एक बात खूब देखी जाती है इनका लेखन बहुत अच्छा होता है
यह पुस्तक पढ़ने मे बहुत रूचि लेते है इनके पास पुस्तको का संग्रालय होता है।

शुभ बुध आदित्य योग के जातक लेखक
गणित, ज्ञान विज्ञानं, चिकित्सा, बैंक कर्मचारी और ज्योतिष ज्यादा देखे जाते है।

बुध सूर्य के सबसे समीप रहता है तथा बहुत सी कुंडलियों में बुध तथा सूर्य एक साथ ही देखे जाते हैं जिसका अर्थ यह हुआ कि इन सभी कुंडलियों में बुध आदित्य योग बन जाता है जिससे अधिकतर जातक इस योग से मिलने वाले शुभ फलों को प्राप्त करते हैं।

जो की ऐसी वास्तविक जीवन में देखने को नहीं मिलती क्योंकि इस योग के द्वारा प्रदान की जाने वालीं विशेषताएं केवल कुछ विशेष जातकों में ही देखने को मिलतीं हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि बुध आदित्य योग की परिभाषा अपने आप में पूर्ण नहीं है

तथा किसी कुंडली में इस योग का निर्माण निश्चित करने के लिए कुछ अन्य तथ्यों के विषय में विचार कर लेना भी आवश्यक है।

यह भी बता दिया जाएं की बुध आदित्य योग कब कब फलित नहीं होगा…

  1. 1 :- बुध + सूर्य तुला राशि पर हो ! क्यों की तुला राशि पर सूर्य नीच का हो जायेगा
  2. 2:- बुध + सूर्य मीन राशि पर हो ! क्यों की बुध मीन राशि पर नीच का हो जायेगा
  3. 3 :- बुध + सूर्य के साथ किसी तीसरे ग्रह की युति हो तब भी यह योग पूर्ण रूप से फलित नहीं होगा
  4. 4 :- बुध + सूर्य युति मे बुध वक्री हो या पूर्ण अस्त हो
  5. 5 :- बुध + सूर्य की युति छटे , आठवें , बारवे भाव मे हो
  6. 6:- बुध + सूर्य की युति हो और शनि की सूर्य पर 3 या 10 नीच दृष्टि हो

एक बात मुख्य रूप से है की यह युति सप्तम भाव मे बहुत ख़राब होती है सप्तम भाव मे यह युति जातक का वैवाहिक जीवन तहस नहस कर देती है।

सप्तम भाव मे सूर्य गर्म मिजाज जीवन साथी देता है। बुध जीवन साथी को जातक से जयदा चतुर
और चंचल झगडालू बना देता है

अब इस योग को प्रथम भाव से शुरू करते है

  • बुधादित्य योग यदि लग्न में हो तो बालक का कद माता-पिता के बीच का होता है। यदि वृष, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, कुंभ, राशि लग्न में हो तो लंबा कद होता है। जातक का स्वभाव कठोर तथा वात-पित्त-कफ से पीड़ित होता है।
  • बाल्यावस्था में कान, नाक, आंख, गला, दांत आदि में कष्ट सहन करना पड़ता है। स्वभाव से वीर, क्षमाशील, कुशाग्र बुद्धि, उदार, साहसी एवं आत्मसम्मानी होता है। स्त्री जातक में प्राय: चिड़चिड़ापन तथा बालों में भूरापन भी देखा जाता है।
  • द्वितीय भाव में यदि बु‍धादित्य योग हो तो तार्किक अभिव्यक्ति होती है, लेकिन व्यवहार में शून्यता-सी झलकती है। कई अभियंताओं, घूसखोरों एवं ऋण लेकर तथा दूसरों के धन से व्यवसाय करने वाले या दूसरों की पुस्तकें लेकर अध्ययन करने वाले लोगों के लिए स्‍थिति प्राय: बनी हुई होती है।
  • तृतीय स्थान पर यदि बुधादित्य योग हो तो जातक स्वयं परिश्रमी होता है तथा भाई-बहनों में आत्मीय स्नेह नहीं पा सकता। मौसी को कष्ट रहता है तथा भाग्योदय के अनेक अवसर खो देता है। पात्रता के अनुरूप नौकरीपेशा तथा व्यवसाय अवश्य प्रदान करवाता है, लेकिन पारिवारिक खुशहाली में बाधक होता है।
  • तृतीय स्थान के बुधादित्य योग को अधिकतर विद्वान एवं ग्रंथ श्रेष्ठ मानते हैं। लेकिन 70 प्रतिशत जन्मांग चक्रों के अनुसार यह योग आज के युग में श्रेष्ठ नहीं है।
  • चतुर्थ भाव में बुधादित्य योग मनुष्य को आशातीत सफलता प्रदान करने वाला होता है। संस्था प्रधान, तार्किक मति, कुलपति, प्रोफेसर, इंजीनियर, सफल राजनेता, न्यायाधीश या उच्च कोटि का अपराधी भी बना देता है।
  • माता का स्वास्थ्य चिंताजनक तथा पत्नी के भाग्य का भी सहारा मिलता है। अपनी स्थायी संपत्ति होते हुए भी दूसरों या सरकारी वाहनों, भवनों का उपयोग करने वाला तथा विषमलिंगी मित्रों का सहयोग एवं प्रेम करने वाला होता है।
  • पंचम भाव में यह योग अल्प संतान लेकिन प्रतिभा संपन्न संतान प्रदान करवाता है। चित्त में उद्विग्नता वात रोग एवं यकृत विकार की प्रबल संभावना बन जाती है। घर में भाभी या बड़ी बहन से वैचारिक मतभेद होते हैं।
  • मेष, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन राशि में यह योग अल्प संतान प्रदाता होता है। स्त्री ग्रहों से दृष्ट होने पर कन्या संतान की अधिकता संभव होती है।
  • छठे भाव में सूर्य बुध के साथ हो तो शत्रुओं की मिथ्या विरोधी क्रियाओं से चिंतायुक्त होते हुए भी आत्मविश्वास बना रहता है। मामा पक्ष से बचपन में लाभ मिलता है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर सहयोग नहीं मिल पाता है।
  • सप्तम भाव में सूर्य बुध के साथ हो तो शत्रुओं की मिथ्या विरोधी क्रियाओं से चिंतायुक्त होते हुए भी आत्मविश्वास बना रहता है। मामा पक्ष से बचपन में लाभ मिलता है लेकिन आवश्यकता पड़ने पर सहयोग नहीं मिल पाता है।
  • सप्तम भाव में बुधादित्य योग यौन रोगों को उत्पन्न करने वाला तथा अत्यंत कामी भाव को समय एवं परिस्थिति को ध्यान में रखकर उत्पन्न करने वाला होता है। ऐसे लोग अपने जीवनसाथी की उपेक्षा कर दूसरों की ओर विशेष आकृष्ट होने वाले होते हैं लेकिन कभी भी अंतरंग संबंधों में नहीं बंध पाते हैं।
  • सप्तम के बुधादित्य योग वाले प्राय: चिकित्सक, अभिनेता निजी सहायक, रत्न व्यवसायी, समाजसेवा एवं स्वयंसेवी संस्थाओं से संबद्ध होते हैं। सिंह या मेष राशि सप्तम में हो तो एकनिष्ठ होते हैं। शुभ ग्रहों की दृष्टि एवं सान्निध्य इन योगों में बड़ा भारी परिवर्तन भी कर देता है।
  • अष्टम भाव में यदि बु‍धादित्य योग हो तो जातक किसी को सहयोग करने के चक्कर में स्वयं उलझ जाता है। दुर्घटना में पैर, हाथ, गाल, नाखून एवं दांत पर चोट का भय बना रहता है। विदेशी मुद्रा से व्यापार, किडनी स्टोन, आमाशय में जलन तथा आंतों में विकार भी इस योग का परिणाम बन जाता है।
  • नवम स्थान पर यह योग स्वाभिमानी के साथ-साथ अहंकारी बना देता है तथा प्रारंभ में कई सुअवसरों का परित्याग बड़े भारी पश्चाताप का कारण बनता है।
  • दशम भाव में बुधादित्य योग बुद्धिमान, धन कमाने में चतुर, साहसी एवं संगीत प्रेमी बनाता है। पुत्र-पौत्रादि सुख से संपन्न लेकिन एक संतान से चिंतित भी बनाता है। धार्मिक स्थानों का निर्माण लंबी ख्याति प्रदान कराता है।
  • ग्यारहवें भाव में यदि सूर्य बुध के साथ हो तो यशस्वी, ज्ञानी, संगीत विद्या प्रिय, रूपवान एवं धनधान्य से संपन्न करवाता है। लोकसेवा के लिए सरकार एवं अनेक प्रतिष्ठानों से धन की प्राप्ति होती है।
  • द्वादश भाव में बुधादित्य योग चाचा-ताऊ से विरोध करवाता है तथा अपनी संपत्ति उनके चंगुल में फंस जाती है। जुआ, सट्टा, शेयर या अन्य आकस्मिक धन-लाभ के व्यवसायों में फंसकर अपना सर्वस्व लूटा देता है।
  • बुधादित्य योग को राशि एवं अन्य ग्रहों के संबंध भी प्रभावित करते हैं लेकिन अलग-अलग भावों में एकाकी हो तो ऐसा ही फल प्रदान करता है*